प्यासी बहू ने पकड़ा ससुर का लंड

ससुर बहू की चुदाई की इस गंदी कहानी में पढ़ें कि ट्रेन के सफर में भीड के कारण मुझे अपनी बहू से सात कर खड़ा होना पड़ा तो मेरी कामवासना जग उठी और… दोस्तो, मैं इंडियन सेक्स स्टोरीज पढ़ने का काफी समय से शौकीन हूं। मैंने अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज की बहुत सारी कहानियाँ पढ़ी हैं। मुझे इसकी सेक्सी कहानियाँ पढ़ कर बहुत मजा आता है। फिर मैंने अपने एक दोस्त को भी इसकी कहानियों के बारे में बताया। भी गंदी कहानी पढ़ कर मजा आया।

एक दिन ऐसे ही जब हम दोनों दोस्त साथ में बैठ कर ड्रिंक कर रहे थे तो उसने मुझसे अपने दिल की एक बात बताई। सेक्सी कहानियों पर बात चल रही थी। उसने एक बार ससुर बहू की चुदाई की गंदी कहानी पढ़ी थी। उस दिन नशे में उसने मुझसे अपने साथ घटी एक घटने का जिक्र किया।

मैं उसकी गंदी कहानी को अपने शब्दों में देख रहा हूं। इसलिए आप कहानी को पढ़ते समय इस बात का ध्यान रखें कि ये गंदी कहानी मेरी नहीं है बल्कि मेरे दोस्त की है और उसकी जुबानी में इस घटना को बयान कर रहा हूं। अब मैं अपने दोस्त की जगह ले लेता हूं और बिना किसी देरी के कहानी को शुरू कर रहा हूं।

मेरे परिवार में मेरे दो बेटे हैं। बड़े वाले की शादी को आठ साल हो चुके हैं। बीच वाली एक लड़की है जिसकी शादी पांच साल पहले हो गई थी। सबसे छोटा वाला लड़का है जिसकी शादी को तीन साल हो चुके हैं लेकिन अब तक उसे संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ है।

हमारा परिवार एक संयुक्त परिवार है और सब एक ही घर में रहते हैं। घर काफ़ी बड़ा है और सबके लिए अलग-अलग कमरे हैं इसलिए बड़ा परिवार होते हुए भी किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है। चूँकि मैं परिवार का मुखिया हूँ इसलिए जब भी परिवार में कोई शादी-ब्याह का कार्यक्रम होता था या फिर किसी अनहोनी के कारण किसी की मृत्यु के अंतिम क्रियाकर्म पर जाने की बात होती थी तो मैं ही सब जगह पर जाता था।

अभी हमारे टेलीग्राम चैनल से जुड़ें मैं सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हूं। इसलिए आस-पड़ोस और गली मोहल्ले में मैंने काफी प्रतिष्ठा बना रखी थी। हमारे परिवार का सब लोग काफी आदर करते थे। अगर किसी को मेरी मदद की ज़रूरत होती थी तो मैं कभी मन भी नहीं करता था। इसलिए सब लोगों के साथ अच्छा मेल-जोल था।

ये घाटना तब की है जब एक बार मेरी छोटी बहू को मायके से लेन के लिए जाना था। चुनकी मेरे दोनों बेटे नौकरी करते थे इसलिए उनको छूट नहीं थी। मैं घर पर फ्री ही रहता था इसलिए बहू को लेन का काम मुझे सूप दिया गया। मेरे परिवार के बारे में जान कर आपको मेरी उमर का अंदाज़ा भी हो गया होगा।

उस दिन जब मैं बहू के मायके के शहर में पहुंचूं तो उसके घर वाले स्टेशन पर उसे छोड़ने के लिए आए थे क्योंकि वापसी की ट्रेन आधे घंटे बाद की ही थी। सब कुछ पहले से तय था कि ज्यादा बात-चीत करने का मौका नहीं मिला। बस दुआ-सलाम होने के बाद ट्रेन भी आ गई थी।

वैसे तो हमारे स्टेशन पर भेद कम ही रहती थी लेकिन हमें दिन पता नहीं संयोगवश कुछ ज्यादा ही भेद थी। ट्रेन आकर रुक गई और हम सामान लेकर जल्दी से चढ़ने लगे क्योंकि ट्रेन को वहां पर सिर्फ दो मिनट के लिए ही रुकना था। याही उस स्टेशन का निर्धारित समय था।

जब मैं बहू के पीछे-पीछे चढ़ा तो मेरे पीछे बीस-पचीस सांवरिया और चढ़ गई। भागदाद सी मची हुई थी जो हम दोनों को आगे की तरफ ढकेल कर ले जाने का अमादा थी। हमसे भिड़ के धक्के से बचने के लिए हमने सामने वाले गेट की तरफ सरक लेना ही ठीक समझा।

हमारे कस्बे के स्टेशन पर प्लेटफार्म भी उसी तरफ आना था इसलिए हम सीधे ही सामने वाले दरवाजे के पास जाकर खड़े हो गए। बहू ने घर की मर्यादा को कायम रखते हुए मुझसे घूंघट किया था। छोटी बहू को मैं उषा कह कर ही पुकारता था। वो मेरी बेटी का सामान ही थी.

अब हमारे टेलीग्राम चैनल से जुड़ें पीछे से चढ़ती हुई भीड के कारण हम दोनों ससुर बहू को संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा था। ट्रेन का वो कोच एकदुम से पैक हो गया। फिर जब ट्रेन चली तो धीरे-धीरे सब लोग अपने आप ही एडजस्ट हो गए। मैं बहू के पीछे ही खड़ा हुआ था लेकिन जब मेरा ध्यान भेद से हट कर मेरे शरीर पर गया तो मैंने पाया कि मेरा लंड बहू की गांड पर नीचे बैठ गया था।

लंड की तरफ ध्यान जाते ही, बहू की गांड का एहसास पाते ही मेरे लंड में तनाव आना शुरू हो गया। मैं थोड़ी शर्मिंदगी भी हो रहा था क्योंकि मैंने अपनी बहू को कभी वासना की नज़र से नहीं देखा था। मगर हमें वक्त के हालात ही ऐसे हो गए कि ना चाहते हुए भी मन में वासना हिलोरे मारने लगी थी।

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